Monday, January 20, 2014


मंजिल भी अन्जान बड़ी और राहें भी बेगानी है




मंजिल भी अन्जान बड़ी और राहें भी बेगानी है,
साथ मुसाफ़िर खौफज़दा है, मौसम भी तूफानी है,
जीवन जैसे बिखरे पन्ने, पोथी पर जिल्द पुरानी है,
शंकाओ की इस नगरी में, हर घर में हैरानी है,
मंजिल भी अन्जान बड़ी, और राहें भी बेगानी है ||

इस जीवन के हर किस्से में, तेरी भी एक कहानी है,
वक्त मेरा मायूस बड़ा है, जैसे की ठहरा पानी है,
हर महफ़िल में तेरे चर्चे, जैसे तू गज़ल सयानी है,
आठ पहर बस तेरी यादें, ये कैसी मनमानी है,
मंजिल भी अन्जान बड़ी और राहें भी बेगानी है ||

आँखों में थे स्वप्न बहुत, आज मगर बस पानी है,
प्यार तुझे बेपनाह कर गए, दिल की क्या नादानी है,
मेरे नगमे, मेरी गजले, कौड़ी में बिक जानी है,
थोड़ी ताकत जिस्म में छोडो, ये नय्या भी पार लगानी है,

मंजिल भी अन्जान बड़ी और राहें भी बेगानी है ||

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