Monday, January 20, 2014


मंजिल भी अन्जान बड़ी और राहें भी बेगानी है




मंजिल भी अन्जान बड़ी और राहें भी बेगानी है,
साथ मुसाफ़िर खौफज़दा है, मौसम भी तूफानी है,
जीवन जैसे बिखरे पन्ने, पोथी पर जिल्द पुरानी है,
शंकाओ की इस नगरी में, हर घर में हैरानी है,
मंजिल भी अन्जान बड़ी, और राहें भी बेगानी है ||

इस जीवन के हर किस्से में, तेरी भी एक कहानी है,
वक्त मेरा मायूस बड़ा है, जैसे की ठहरा पानी है,
हर महफ़िल में तेरे चर्चे, जैसे तू गज़ल सयानी है,
आठ पहर बस तेरी यादें, ये कैसी मनमानी है,
मंजिल भी अन्जान बड़ी और राहें भी बेगानी है ||

आँखों में थे स्वप्न बहुत, आज मगर बस पानी है,
प्यार तुझे बेपनाह कर गए, दिल की क्या नादानी है,
मेरे नगमे, मेरी गजले, कौड़ी में बिक जानी है,
थोड़ी ताकत जिस्म में छोडो, ये नय्या भी पार लगानी है,

मंजिल भी अन्जान बड़ी और राहें भी बेगानी है ||
...यहाँ बेगाने बहुत है

इस महफ़िल में मेरी बातों के अफ़साने बहुत है ,
इस दुनियाँ में जीने के यकीनन बहाने बहुत हैं,
झूंठे लफ्जों में ही सही, इक बार दोस्त मुझे अपना कह दे,
मुझे देखकर हँसने वाले यहाँ बेगाने बहुत है||

मेरी ख्वाहिश थी ये कि मेरा दर्द कोई कम कर दे,
वैसे तो मेरे शहर में मयखाने बहुत है,
तेरे लिए हम दिल-ओ-जान से हर वकत तैयार रहते है,
तुझ जैसी शमा पर जलने वाले वैसे परवाने बहुत है ||

मुझे देखकर तुम इस तरह हैरान ना होना,
मेरी आँखों पे अश्क अभी आने बहुत है,
आज अपनी दोस्ती का कोई नगमा सुना दो,
जिंदगी की किताब में इसके तराने बहुत है || 

Thursday, January 2, 2014

बहुत है...

ख्वाब बड़े नाज़ुक नाज़ुक है, ख्वाहिश भी बेताब बहुत है,
वक़्त बहुत ही कम लगता है, मोहलत की दरकार बहुत है,
ढककर हिजाब से रख आया था, अपनी ही आरजू कही पर,
जिन गलियों में घूम के आया, वो गलियां बेकार बहुत है

आँखे भी खाली खाली है, होंठो पर अलफ़ाज़ नहीं है,
साथ मुसाफिर चलने वाले, तेरी तो रफ़्तार बहुत है,
खौफज़दा होकर जीना तो, मेरे मिजाज़ की बात नहीं,
तेरी तारीफों में लुटने वाले, मन में मेरे अशआर बहुत है,

साहिल साहिल ढूंढ रहे हम जिस कश्ती के मांझी को,
उसके दिल में उलझे उलझे कोई तो मजधार बहुत है,
अपनी धड़कन सुन सुनकर के, जितना भी हम कह पाए है,
किस्सा वो दिलचस्प न हो पर दिल जाने के आसार बहुत है,