Friday, November 11, 2016

ख्वाब बड़े नाज़ुक नाज़ुक है

ख्वाब बड़े नाज़ुक नाज़ुक है, ख्वाहिश भी बेताब बहुत है,
वक़्त बहुत ही कम लगता है, मोहलत की दरकार बहुत है,
ढककर हिजाब से रख आया था, अपनी ही आरजू कही पर,
जिन गलियों में घूम के आया, वो गलियां बेकार बहुत है||


आँखे भी खाली खाली है, होंठो पर अलफ़ाज़ नहीं है,
साथ मुसाफिर चलने वाले, तेरी तो रफ़्तार बहुत है,
खौफज़दा होकर जीना तो, मेरे मिजाज़ की बात नहीं,
तेरी तारीफों में लुटने वाले, मन में मेरे अशआर बहुत है||


साहिल साहिल ढूंढ रहे हम जिस कश्ती के मांझी को,
उसके दिल में उलझे उलझे कोई तो मजधार बहुत है,
अपनी धड़कन सुन सुनकर के, जितना भी हम कह पाए है,
किस्सा वो दिलचस्प न हो पर दिल जाने के आसार बहुत है||

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