Wednesday, January 20, 2016

रिश्ता चाँद सितारों से...


दिख जाते है दर रोज, मेरे घर के गलियारों से,

कैसा गहरा रिश्ता है, मेरा इन चाँद सितारों से,


जो रुखसत हुआ जाये इंसान इस जहाँ से,

आबाद सितारों की बस्ती तो हो जाती है,

गर टूट जाए कोई सितारा अपने आशियाने से,

दुआएं इंसानों की भी कुबूल तो हो जाती है,


कुछ नापाक लम्हों ने रुसवा कर दिया जिन्हें इक रोज,

सितारों में उनकी मौजूदगी भी महसूस हो जाती है,

मुनासिब कहाँ कुछ देख पाना, सिवाय बरसते नूर के

लेकिन किसी अपने की यादें महफूज़ तो हो जाती है


अपने अल्फाजो को इतने एहसासों में न लिख ए ‘अश्क’

तेरे ही दिल की धड़कने, तेरे अल्फाजो से यूँ मायूस हो जाती हैं

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