Friday, November 14, 2014


वो अपनी नज़र के क्या क्या, अंदाज़ रखते थे,
नज़र में हम थे मगर फिर भी, नज़रंदाज़ करते थे,
लबो पर सजाई थी यूँ समंदर सी ख़ामोशी,
पर अपनी धडकनों से वो बहुत आवाज़ करते थे
~
तेरा इनकार अधूरा था, मेरा इजहार अधूरा था,
शायद तेरे, मेरे दिल में कोई प्यार अधूरा था,
उसे मुकम्मल करने की कैसे, जुर्रत हम कर जाते,
कि जिस 'प्यार' का पहला, अल्फाज़ अधूरा था
~ आशीष ~

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