Wednesday, June 26, 2013

पुष्प कि यात्रा



मालूम मुझे होते फीके से ,दिखते जो रंग ज़माने में,
तुमने देख लिए है जो, कुछ जाने में कुछ अनजाने में,

सच है ये कि साथ समय के, परिवर्तन तो होता है,
बगिया का हर एक सुमन, अपनी खुशबु को खोता है,
माली की गलती क्या है, उसने तो खूब संवारा था,
बगिया का हर फूल उसे, अपनी जान से भी प्यारा था,
कुदरत ने मौसम बदले तो, फूलों की ताकत झूंझ गयी,
उस दिन रंगों कि दुनियाँ फूलों से, बेदर्दी से रूठ गयी||
कलियाँ खिलकर फूल बनी, क्या बागबान की भूल बनी?
नहीं नहीं वो तो मरकर भी, माली के पैरों कि धूल बनी||


ऐसे में वो बागबान भी, आखिर में हिम्मत हार गया,
लेकर अपने दुखड़े को, हर बाशिंदे के पास गया,
लफ्जों को सुनकर वो उसका, दर्द समझ न पाए थे,
जितने भी थे घाव सभी, दिल पर ही उसने खाए थे,
उसकी हिम्मत के अवसर सब, कर बैठे थे हाथ खड़े,
उसकी घबराई आँखों से फिर, अश्को के धारे निकल पड़े,

माली तो मालामाल हुआ,इन दुखो से और दरख्तों से,
और कहना छोड़ दिया, उसने भगवान के भक्तो से,
पतझड़ के मौसम बीते, के सावन फिर मेहमान बना,
जिस मौसम ने क़त्ल किये, के आज वो रहमान बना,

माली की आँखों से आंसू, अब तक भी बहते रहते हैं ,
फूल बने हैं जो वापस, देखो माली से क्या कहते हैं,

अश्क तुम्हारी आंखो के, बह जाये हमारी आँखों से,
दिल न दुखे कभी तुम्हारा, हम नादानो कि बातों से,
तुमने जीवन कि परिभाषा से हमें मिलाया है,
खुशबु देने वाले फूलों को, तुमने ही प्यार सिखाया है ,

बागबान के लिए दुआएँ , करने को आने लगे
और उसी दिन से मंदिर में, पुष्प चढाये जाने लगे ||




-आशीष कुमार गुप्ता

apne hi shahar me hum yu begane ho gaye,
hatho me sharbat ke pyale aaj paimane ho gaye,
jaha baithkar karte the, tarif teri aankho ki,
tere jaane ke bad sabhi, maikhane ho gaye